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Paper Title

दुष्यंत कुमार के काव्य में सामाजिक यथार्थ

Article Type

Research Article

Issue

Volume : 1 | Issue : 4 | Page No : 09-14

Published On

September, 2024

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Abstract

दुष्यंत कुमार आधुनिक हिंदी साहित्य के सुप्रसिद्ध हस्ताक्षर के रूप में लब्ध प्रतिष्ठित हैं। उनके प्रकाशित कुल तीन काव्य-संग्रह - सूर्य का स्वागत' (1957), 'आवाजों के घेरे' (1963), 'जलते हुए वन का वसंत' (1973), एक गीति नाट्य- एक कंठ विषपायी' (1963) और एक गज़ल - संग्रह - 'साये में धूप' (1975) है। दुष्यंत कुमार अपने गज़ल-संग्रह 'साये में धूप' के लिए विशेष प्रसिद्ध हैं। 'साये में धूप' ने उनको प्रसिद्धि के शिखर पर पहुँचाया। ‘साये में धूप' के गजलों से उन्होंने हिन्दी गज़ल साहित्य को नई अर्थवत्ता और पहचान दी है। ने साहित्य को 'समाज का दर्पण' कहा जाता है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल अपने 'हिंदी साहित्य के इतिहास' में लिखा है कि- “जब कि प्रत्येक देश का साहित्य वहां की जनता की चित्तवृत्तियों का संचित प्रतिबिंब होता है, तब यह निश्चित है कि जनता की चित्तवृत्ति के परिवर्तन के साथ-साथ साहित्य के स्वरूप में भी परिवर्तन होता चला जाता है....जनता की चित्तवृत्ति बहुत कुछ राजनीतिक, सामाजिक, सांप्रदायिक तथा धार्मिक परिस्थिति के कारण होती है । इस प्रकार साहित्य और समाज में अभिन्न सम्बन्ध है। साहित्य और समाज एक दूसरे से गहरे जुड़े होते हैं। जहाँ एक और समाज से साहित्य को विषय और प्रेरणा मिलती है तो, दूसरी ओर साहित्य समाज को जागृत, आंदोलित और सामाजिक समस्याओं की ओर ध्यानाकर्षित करने का कार्य करता है। डॉ. कमला प्रसाद पाण्डेय का अभिमत है कि “विश्व के किसी भी साहित्य का जन्म उस देश के समाज की आवश्यकताओं का प्रतिफल है। साहित्य के इतिहास के विभिन्न युग, युग विशेष के ही संदर्भ हैं। हिंदी साहित्य के इतिहास में आदिकाल, भक्तिकाल, रीतिकाल एवं आधुनिककाल साहित्य के युग है । इन सभी युगों की प्रेरणा भूमि समाज ही रही है”2।

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