Abstract
दिनकर की राष्ट्रीय चेतना शोध सार डॉ.दिवाकर चौधरी सहायक प्राध्यापक,हिन्दी-विभाग, श्री राधाकृष्ण गोयनका महाविद्यालय,सीतामढ़ी,बिहार रामधारी सिंह दिनकर हिन्दी साहित्य जगत में ‘राष्ट्रकवि’ के रूप में लब्ध प्रतिष्ठित हैं। उनका संपूर्ण साहित्य भारत की अस्मिता की खोज है, राष्ट्र की चेतना की अभिव्यक्ति और भारतीय संस्कृति की आत्मा का प्रतिबिंबि है। उनका सम्पूर्ण साहित्य राष्ट्रीय जागरण व संघर्ष के आह्वान का जीता-जागता दस्तावेज है।दिनकर जी के यहाँ राष्ट्रीय चेतना कई स्तरों पर व्यक्त हुई है। दिनकर जी ने अपनी कविताओं में विद्रोह और विप्लव को स्वर दिया है। इनके साहित्य में कर्म, उत्साह, पौरुष एवं उत्तेजना का संचार है। यह तत्कालीन राष्ट्रीय आंदोलन की प्रगति के लिये अत्यंत सहायक सिद्ध हुआ था। संघर्ष के आह्वान के साथ दिनकर जी ने प्राचीन भारतीय आदर्शों एवं मूल्यों की स्थापना के माध्यम से भी राष्ट्रीय जागरण व राष्ट्रीय गौरव की भावनाओं को जगाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। दिनकर जी की राष्ट्रीय चेतना का एक अन्य स्तर पर वहाँ दिखाई देती है, जहाँ वे शोषण का प्रतिकार करने का समर्थन करते हैं। वे अनैतिकता को किसी रूप में स्वीकार नहीं कर पाते हैं। दिनकर जी की राष्ट्रीय चेतना संकीर्ण नहीं है। यह न केवल ब्रिटिश राज्य का विरोध करने वाली है अपितु स्वतंत्रता के बाद भी जनता के सामाजिक-आर्थिक शोषण के विरुद्ध आवाज उठाने वाली है। कवि ने ‘दिल्ली’, ‘नीम के पत्ते’, ‘परशुराम की प्रतिज्ञा’ में स्वतंत्रता-उपरांत जनजीवन में व्याप्त आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक विषमताओं का चित्रण किया है। दिनकर जी भारतीय संवेदना के साहित्यकार हैं। भारतीय संस्कृति और अस्मिता की जमीन से जुड़े साहित्यकार हैं। उनके काव्य ने समय-समय पर भारतीय युग चेतना को राष्ट्र की अस्मिता के प्रति उद्वेलित किया है। जन मानस को राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत किया है। राष्ट्रकवि दिनकर का साहित्य भारतीयता के सन्दर्भ में प्रासंगिक है और यह प्रासंगिकता युग-युग का प्रतिनिधित्व करती है। इसलिए राष्ट्रकवि दिनकर हिन्दी साहित्य-जगत में अमर हैं। उनका साहित्य भारतीय संस्कृति और भारतीयता की प्रस्तावना है। उनकी दृष्टि में भारत एक भू-खण्ड मात्र नहीं है बल्कि एक विचारधारा है।
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